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Saturday, 17 October 2015

मेरी आज की ताज़ा रचना "गुडिया" पर 28-06-2015 रविवार
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|}{| गुड़िया |}{|
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ये जो गुड़िया है मेरे गुड्डा की प्यारी बीवी,
इसका बचपन भी पड़े भारी मेरे पचपन पे,
सहेज यादें मेरी गुड़िया ने ही रक्खी हैं,
ये मेरा प्यार, तमन्ना, मेरी दुनिया सी भी,
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तमाम उम्र कोई कैसे भूल सकता इसे,
मेरा दिल बच्चा है ये दुनिया भी समझे कैसे,
सितारों से मैं चुराता हूँ चाँदनी की किरण,
कि मेरी गुड़िया की आँखों में चमक हो जैसे 
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मेरा बचपन मुहब्बतों में इसकी गुज़रा है,
मेरा सावन भी जवानी में ऐसे बिछुड़ा है,
मेरी गुड़िया ने मेरे दिल की धडकनों के संग,
अपनी दिल की तरंगों का भी साज छेड़ा है
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क्या कोई दोस्त मेरी गुड़िया सा,
जो पानी और आँसुओं के रंग को समझे,
मैं इसे जब वियोग में भी करूं आलिंगन,
ये मुझे चूम ले मेरे सारे आंसू भी पी ले।
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ये जो गुड़िया है मेरे गुड्डा की प्यारी बीवी
ये मेरा प्यार, तमन्ना, मेरी दुनिया सी भी

©
सचिन पी पुरवार

मेरा बचपन

बचपन पर आज की मेरी रचना-27-06-2015
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मेरा बचपन-
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मेरा बचपन सुगम सरल मनमोहक सुन्दर सपना था,

बच्चों संग मैं बच्चा था और एक घरौंदा अपना था,
चिड़िया उड़, तोता उड़ करके भैंस उड़ाया करता था,
कभी तड़ापड़ करता था तो कभी कराया करता था,
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मेरी दादी मुझे कहानी रोज सुनाया करती थी,
एक चवन्नी, हाँ-हूँ करता तभी थमाया करती थी,
हाथी-घोड़े और परी की लोक-कथाएं ऐसी थीं,
कभी-2 पृथ्वी पर रहता, कभी मरकरी अपनी थी,
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कोई ना चिंता कोई परेशानी ना कोई तमन्ना था,
क्यों कि सपनों को साकार करे वो दादी अम्मा थी,
चाभी वाली कार बैठ दुनिया मैं घूम लिया करता,
जब भी लगती भूख-मुरब्बा, शक्कर ढूढ़ लिया करता,
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आज बड़ा हो गया हूँ शायद पर मेरा इक सपना था,
उड़ूं आसमानों में क्यों कि आसमान भी अपना था,
उड़ा दिया मुझको जहाज ने, नहीं मजा पर उतना था,
जैसा मेरा बचपन सुगम सरल मनमोहक सपना था,
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©सचिन पी पुरवार