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Saturday, 17 October 2015

मेरी आज की ताज़ा रचना "गुडिया" पर 28-06-2015 रविवार
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|}{| गुड़िया |}{|
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ये जो गुड़िया है मेरे गुड्डा की प्यारी बीवी,
इसका बचपन भी पड़े भारी मेरे पचपन पे,
सहेज यादें मेरी गुड़िया ने ही रक्खी हैं,
ये मेरा प्यार, तमन्ना, मेरी दुनिया सी भी,
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तमाम उम्र कोई कैसे भूल सकता इसे,
मेरा दिल बच्चा है ये दुनिया भी समझे कैसे,
सितारों से मैं चुराता हूँ चाँदनी की किरण,
कि मेरी गुड़िया की आँखों में चमक हो जैसे 
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मेरा बचपन मुहब्बतों में इसकी गुज़रा है,
मेरा सावन भी जवानी में ऐसे बिछुड़ा है,
मेरी गुड़िया ने मेरे दिल की धडकनों के संग,
अपनी दिल की तरंगों का भी साज छेड़ा है
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क्या कोई दोस्त मेरी गुड़िया सा,
जो पानी और आँसुओं के रंग को समझे,
मैं इसे जब वियोग में भी करूं आलिंगन,
ये मुझे चूम ले मेरे सारे आंसू भी पी ले।
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ये जो गुड़िया है मेरे गुड्डा की प्यारी बीवी
ये मेरा प्यार, तमन्ना, मेरी दुनिया सी भी

©
सचिन पी पुरवार

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