क्या सुन्दर पर्व है जन्माष्टमी, पर अब तो सब कुछ बदल गया है पहले बड़ा ही शौक था झांकी सजाने का | मम्मी की साड़ियाँ, वो झूमर, वो झालर, वो एक टब में शंकर भगवान की प्रतिमा जिस पर ग्लूकोस की बोतल वाली नलिकाओं से ऐसी व्यवस्था बनाना प्रतीत हो मानो कि साक्षात् श्री जी के सर से गंगा निकल रही है ...
वो भगवान श्री कृष्ण जी की प्रतिमा के पीछे मोटर लगाकर ऐसी व्यवस्था बनाना मानो की सुदर्शन चक्र घूम रहा हो....
वो थर्माकोल, वो रुई के गोले लाकर पहाड़ बनाना.... अब तो सब कुछ सपने जैसा लगता है |
पहले बच्चे थे, स्कूल की छुट्टियाँ भी हो जाती थी आज ऑफिस से जन्माष्टमी जैसे सुन्दर पर्व के लिए छुट्टी नहीं मिलती और न ही अब पहले जैसी रौनक रह गयी है .... लोगो में पर्व के प्रति उत्साह भी नहीं दिखलाई पड़ता है
बस एक कविता के माध्यम से मैं मैं अपनी भावनाएं व्यक्त करता हूँ

"हे नाथ तुम्हारे चरणों में जीवन जीने की चाहत है,
हे प्रभु आप बिन सब सूना बस आप की मुझको आदत है
लीला तेरी कितनी सुन्दर, वो ग्वाल वाल, माखन चोरी
मैया से जाना रूठ-२, सो जाना सुन सुन्दर लोरी"
वो गोकुल कि रक्षा कर इंद्र प्रकोप से उसे बचाना
वो गोवर्धन पर्वत को अपनी इक ऊँगली पे उठाना
सुन्दर छवि प्यारे कृष्ण और बंशी की धुन प्यारी-२
गोपी संग श्यामा न्रत्य करें, राधा जाए वारी-२
वो शेषनाग के मुंह से लाना गेंद वाह लीला न्यारी
वो छेड़ सुदामा न्रत्य करें, राधा जाए वारी-२
वो कंस और उसकी सेना को धराशाई पल में करना
वो मथुरा नगरी को उसके चंगुल से क्या स्वतंत्र करना
हे कृष्ण देव देवाधि देव क्या सुन्दर बातें खूब कहीं
गीता का सुन्दर ज्ञान सखा अर्जुन को देना खूब सही
हर पल, हर घडी याद आयें तेरी लीला रास-रचैया
तेरे चरणों में ये जीवन बस पार लगाओ नैया....
तेरे चरणों में ये जीवन बस पार लगाओ नैया....
रचित - सचिन पी पुरवार
No comments:
Post a Comment