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Wednesday, 25 July 2012

संतुलन


हर चीज इस जहाँ में, निर्भर है संतुलन पर
हालात संतुलन पर, जज्बात संतुलन पर

रिश्ते भी इस जहाँ में, निर्भर हैं संतुलन पर
हर चीज है अधूरी, बस पूरी संतुलन पर

नफरत हो या मुहब्बत, करना हो गर सफलतम
नजदीकियों का दूरियों का, रखना संतुलन तुम

जितना करीब जिसके, गर होते जाओगे तुम
उतने गरीब रिश्तों में, होते जाओगे तुम

उदहारण

देता हूँ इक उदहारण, ढंग से समझने को मैं
कुछ हो सके भला तो, धन्य खुद को समझूंगा मैं

जब दोस्ती नयी हो, क्या खूब रंग लाती
दिल में तरंग से हो, उत्पन्न प्रेम पाती

इक दूजे के लिए तो, हर पल है जान हाजिर
इक दूजे के लिए जो, बन जाते ऐसे नाजिर

अधिकार भी जताना, भई खूब लाजमी है
इक दोस्त की नज़र, में उसकी दोस्त नाजनी है

क्या प्रेम पूर्ण बातें, निर्लज्य पूर्ण बातें
आपस की समझदारी, वो करीबियों की रातें

बस ये ही संतुलन जो, दूरी का बन न पाया
बस इस जगह पे आके, तूफान बनती बातें

करीब उनके आके, दूरी का उनसे बढ़ना
बिगड़ा था संतुलन अब, जारी था उनसे लड़ना

बस बातें छोटी-छोटी, युद्ध महाभारतों सा
अब बढ़ चुकी थी बातें, कुछ भी न हाथ में था

अपील

रिश्तों में चाहते हो, गर मित्र न दरारें
दूरी औ बस करीबी, संतुलन के है सहारे

कब बात करनी उनसे, कब करनी है उपेक्षा
बस सीखना है ये गुण, न करनी कुछ अपेक्षा

जिस दिन भी तुम ऐ गाफिल, कला ये सीख लोगे
दुनिया में दुश्मनों का भी, प्यार जीत लोगे

सचिन पुरवार (इटावा)


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