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Saturday, 17 October 2015

मेरी आज की ताज़ा रचना "गुडिया" पर 28-06-2015 रविवार
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|}{| गुड़िया |}{|
!
ये जो गुड़िया है मेरे गुड्डा की प्यारी बीवी,
इसका बचपन भी पड़े भारी मेरे पचपन पे,
सहेज यादें मेरी गुड़िया ने ही रक्खी हैं,
ये मेरा प्यार, तमन्ना, मेरी दुनिया सी भी,
|}{|
तमाम उम्र कोई कैसे भूल सकता इसे,
मेरा दिल बच्चा है ये दुनिया भी समझे कैसे,
सितारों से मैं चुराता हूँ चाँदनी की किरण,
कि मेरी गुड़िया की आँखों में चमक हो जैसे 
|}{|
मेरा बचपन मुहब्बतों में इसकी गुज़रा है,
मेरा सावन भी जवानी में ऐसे बिछुड़ा है,
मेरी गुड़िया ने मेरे दिल की धडकनों के संग,
अपनी दिल की तरंगों का भी साज छेड़ा है
|}{|
क्या कोई दोस्त मेरी गुड़िया सा,
जो पानी और आँसुओं के रंग को समझे,
मैं इसे जब वियोग में भी करूं आलिंगन,
ये मुझे चूम ले मेरे सारे आंसू भी पी ले।
|}{|
ये जो गुड़िया है मेरे गुड्डा की प्यारी बीवी
ये मेरा प्यार, तमन्ना, मेरी दुनिया सी भी

©
सचिन पी पुरवार

मेरा बचपन

बचपन पर आज की मेरी रचना-27-06-2015
!
मेरा बचपन-
!
मेरा बचपन सुगम सरल मनमोहक सुन्दर सपना था,

बच्चों संग मैं बच्चा था और एक घरौंदा अपना था,
चिड़िया उड़, तोता उड़ करके भैंस उड़ाया करता था,
कभी तड़ापड़ करता था तो कभी कराया करता था,
!
मेरी दादी मुझे कहानी रोज सुनाया करती थी,
एक चवन्नी, हाँ-हूँ करता तभी थमाया करती थी,
हाथी-घोड़े और परी की लोक-कथाएं ऐसी थीं,
कभी-2 पृथ्वी पर रहता, कभी मरकरी अपनी थी,
!
कोई ना चिंता कोई परेशानी ना कोई तमन्ना था,
क्यों कि सपनों को साकार करे वो दादी अम्मा थी,
चाभी वाली कार बैठ दुनिया मैं घूम लिया करता,
जब भी लगती भूख-मुरब्बा, शक्कर ढूढ़ लिया करता,
!
आज बड़ा हो गया हूँ शायद पर मेरा इक सपना था,
उड़ूं आसमानों में क्यों कि आसमान भी अपना था,
उड़ा दिया मुझको जहाज ने, नहीं मजा पर उतना था,
जैसा मेरा बचपन सुगम सरल मनमोहक सपना था,
!
©सचिन पी पुरवार

Friday, 21 December 2012

ओ नारी


ओ नारी
तू है शेरनी
बस भूल गयी है तू
अपना अस्तित्व

तेरे आगे क्या बिसात
इन भेड़ियों की
क्या औकात

तू टूट पड़
बन रणचंडी
कर दे कुत्ते को
तार-तार

तू उठ पहले
तुझे देख कर
होंगी प्रेरित
बहनें सारी

बना दे उनको भी
शेरनी
ओ नारी
तू है शेरनी

सचिन पी पुरवार

Thursday, 20 December 2012

मेरी बहनों ... तुम अकेली नहीं हो

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मेरी बहनों ... तुम अकेली नहीं हो .... तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ है

समर्पित ये पंक्तियाँ तुम सब बहनों को

सुनो दरिंदों अब कोई भी लड़की नहीं अकेली है
दिखला देगी वो भी रोड और हथियारों से खेली है
कुत्तों की अब खाल में भुस भरने को बहनें आई हैं
रोडें चाकू और तलवारें मेरी बहनों की सहेली है

हिम्मत और साहस का दामन न छोड़ना
करके कुछ ऐसा दुनिया को दिखा देना
अबला नहीं तुम हो दुर्गावती
इस दुनिया को लड़की का मतलब बता देना

तुम दुर्गा तुम काली तुम अम्बे तुम ज्वाला
तुम हो चंडी रूपा महाकाली बाला
करके कुछ ऐसा दुनिया को दिखा देना
"सचिन" की बहन हो दुनिया को बता देना

अबला नहीं तुम हो दुर्गावती
इस दुनिया को लड़की का मतलब बता देना

सचिन पी पुरवार

Saturday, 1 September 2012

श्री कृष्ण जन्माष्टमी - 10-aug-2012


क्या सुन्दर पर्व है जन्माष्टमी, पर अब तो सब कुछ बदल गया है पहले बड़ा ही शौक था झांकी सजाने का | मम्मी की साड़ियाँ, वो झूमर, वो झालर, वो एक टब में शंकर भगवान की प्रतिमा जिस पर ग्लूकोस की बोतल वाली नलिकाओं से ऐसी व्यवस्था बनाना प्रतीत हो मानो कि साक्षात् श्री जी के सर से गंगा निकल रही है ...
वो भगवान श्री कृष्ण जी की प्रतिमा के पीछे मोटर लगाकर ऐसी व्यवस्था बनाना मानो की सुदर्शन चक्र घूम रहा हो....
वो थर्माकोल, वो रुई के गोले लाकर पहाड़ बनाना.... अब तो सब कुछ सपने जैसा लगता है |
पहले बच्चे थे, स्कूल की छुट्टियाँ भी हो जाती थी आज ऑफिस से जन्माष्टमी जैसे सुन्दर पर्व के लिए छुट्टी नहीं मिलती और न ही अब पहले जैसी रौनक रह गयी है .... लोगो में पर्व के प्रति उत्साह भी नहीं दिखलाई पड़ता है

बस एक कविता के माध्यम से मैं मैं अपनी भावनाएं व्यक्त करता हूँ
समर्पित श्री चरणों में मेरी चंद पंक्तियाँ

"हे नाथ तुम्हारे चरणों में जीवन जीने की चाहत है,
हे प्रभु आप बिन सब सूना बस आप की मुझको आदत है

लीला तेरी कितनी सुन्दर, वो ग्वाल वाल, माखन चोरी
मैया से जाना रूठ-२, सो जाना सुन सुन्दर लोरी"

वो गोकुल कि रक्षा कर इंद्र प्रकोप से उसे बचाना
वो गोवर्धन पर्वत को अपनी इक ऊँगली पे उठाना

सुन्दर छवि प्यारे कृष्ण और बंशी की धुन प्यारी-२
गोपी संग श्यामा न्रत्य करें, राधा जाए वारी-२

वो शेषनाग के मुंह से लाना गेंद वाह लीला न्यारी
वो छेड़ सुदामा न्रत्य करें, राधा जाए वारी-२

वो कंस और उसकी सेना को धराशाई पल में करना
वो मथुरा नगरी को उसके चंगुल से क्या स्वतंत्र करना

हे कृष्ण देव देवाधि देव क्या सुन्दर बातें खूब कहीं
गीता का सुन्दर ज्ञान सखा अर्जुन को देना खूब सही

हर पल, हर घडी याद आयें तेरी लीला रास-रचैया
तेरे चरणों में ये जीवन बस पार लगाओ नैया....
तेरे चरणों में ये जीवन बस पार लगाओ नैया....


रचित - सचिन पी पुरवार

Wednesday, 8 August 2012

रक्षाबंधन



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सूनी है कलाई मेरी प्रेम सूत्र बांधो बहना
तेरे इंतज़ार में कलाई मेरी प्यारी बहना
शुभ दिन और कितना पावन प्रतीक दिन ये
प्रेममयी धागों से सजा दो इसको प्यारी बहना

आक्रमण सुल्तान ने सोलह सदी में बोला जब
बहन बनके रक्षा खातिर हाथ वो फैलाये बहना
कर्णावती देख रही आसरा हुमायूँ तुमसे,
प्रेम सूत्र आग्रह संग भेजा था उसने प्यारी बहना

बंध गया था हुमायूँ प्रेम सूत्र बंधन में अब
जान जाए पर बहन की रक्षा होनी चाहिए
जैसे ठाना था हुमायूँ ने बहना की रक्षा खातिर
तेरी लाज मेरे हाथों है सुरक्षित मेरी बहना

देता हूँ वचन मैं तुझको, राखी की सौगंध है मुझको
हर पल ख़ुशी के दूंगा आंच न आने दूँ बहना
शुभ दिन और कितना पावन प्रतीक दिन ये
प्रेममयी धागों से सजा दो इसको प्यारी बहना








रचित - सचिन पी पुरवार

Saturday, 4 August 2012

दोस्ती (HAPPY FRIENDSHIP DAY)- 05-AUG-2012


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ऐ दोस्त तेरी दोस्ती क्या रंग लाई है
खुशबू कोई बिखेरती तरंग आई है
इस दोस्ती पे मुझको बड़ा ही नाज़ है
सुन लफ्ज़ लव पे तेरे मुस्कान आई है

कर वादा मुझसे यारा न तोड़ेगा मुझसे यारी
तेरी बात इस जहाँ में मुझको है सबसे प्यारी
इस दोस्ती की मस्ती तन-मन में छाई है
सुन लफ्ज़ लव पे तेरे मुस्कान आई है

दम चाहें निकले मेरा छोडूं न साथ तेरा
तेरी दोस्ती से बढ़कर कुछ न जहाँ में मेरा
इस दोस्ती की रंगत बहार लाई है
सुन लफ्ज़ लव पे तेरे मुस्कान आई है

सुन लफ्ज़ लव पे तेरे मुस्कान आई है


रचित - सचिन पी पुरवार

Wednesday, 25 July 2012

सिल्की का जन्मदिन 19-jul-12


सिल्की बेटा आपको जन्मदिवस की लाखों - करोड़ों बधाइयाँ

समर्पित एक छोटी सी कविता आपको

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=419115754794164&set=a.173459009359841.36703.100000872303630&type=1&theater



"रहो सदा खुश दुआ यही है मेरी राजा बेटा,
जन्म दिवस पर मैं देता हूँ, यही आपको तोहफा,

खूब मस्तियाँ करो साथ ही अव्वल रहो पढाई में,
ईश्वर का तुम ध्यान लगाओ जब भी हो तन्हाई में,

इस शुभ दिन तुम, कर लो ये प्रण, हाथ में लेकर पानी को,
सकारात्मक दिशा ही देंगे इस जीवन की कहानी को,

कभी नहीं टालेंगे मम्मी और पापा की बातों को,
बातें उनकी याद करेंगे, सोने से पहले रातों को,

धीर और गंभीर शीलता, मर्यादा और स्वाभिमान,
साथ हमेशा रखना बेटा, खूब कमाओगे तुम नाम,










रचित- सचिन पुरवार (इटावा)

संतुलन


हर चीज इस जहाँ में, निर्भर है संतुलन पर
हालात संतुलन पर, जज्बात संतुलन पर

रिश्ते भी इस जहाँ में, निर्भर हैं संतुलन पर
हर चीज है अधूरी, बस पूरी संतुलन पर

नफरत हो या मुहब्बत, करना हो गर सफलतम
नजदीकियों का दूरियों का, रखना संतुलन तुम

जितना करीब जिसके, गर होते जाओगे तुम
उतने गरीब रिश्तों में, होते जाओगे तुम

उदहारण

देता हूँ इक उदहारण, ढंग से समझने को मैं
कुछ हो सके भला तो, धन्य खुद को समझूंगा मैं

जब दोस्ती नयी हो, क्या खूब रंग लाती
दिल में तरंग से हो, उत्पन्न प्रेम पाती

इक दूजे के लिए तो, हर पल है जान हाजिर
इक दूजे के लिए जो, बन जाते ऐसे नाजिर

अधिकार भी जताना, भई खूब लाजमी है
इक दोस्त की नज़र, में उसकी दोस्त नाजनी है

क्या प्रेम पूर्ण बातें, निर्लज्य पूर्ण बातें
आपस की समझदारी, वो करीबियों की रातें

बस ये ही संतुलन जो, दूरी का बन न पाया
बस इस जगह पे आके, तूफान बनती बातें

करीब उनके आके, दूरी का उनसे बढ़ना
बिगड़ा था संतुलन अब, जारी था उनसे लड़ना

बस बातें छोटी-छोटी, युद्ध महाभारतों सा
अब बढ़ चुकी थी बातें, कुछ भी न हाथ में था

अपील

रिश्तों में चाहते हो, गर मित्र न दरारें
दूरी औ बस करीबी, संतुलन के है सहारे

कब बात करनी उनसे, कब करनी है उपेक्षा
बस सीखना है ये गुण, न करनी कुछ अपेक्षा

जिस दिन भी तुम ऐ गाफिल, कला ये सीख लोगे
दुनिया में दुश्मनों का भी, प्यार जीत लोगे

सचिन पुरवार (इटावा)


Saturday, 16 June 2012

Happy Father's Day-17-jun-2012


कभी नहीं पटती पापा से फिर भी पापा मेरे हीरो
पड़ा तमाचा इक गलती पे फिर भी पापा मेरे हीरो

मुझे याद है बचपन में मैं बहुत शरारत करता था
पापा नित नए लायें खिलौने तोड़ तोड़ मैं रखता था,

नयी किताबें पापा लाते मनमोहक खुशबु से सरोवार
फटने में बस दिन लगते थे एक दो या फिर तीन चार,

बड़ा हुआ धीरे धीरे मैं समझ आई मुझमे थोड़ी
जिसकी आस तो पापा ने न जाने कब से थी छोड़ी ... :-P

गलती करके बहस यूँ करना जैसे सारी दुनिया देखी
भूल के सारी बातों को कि उनसे ही दुनिया सीखी

नमन आज इस पावन दिन पर श्रद्धा से स्वीकार करो
भूल के सारी बातें मेरी चरणस्पर्श स्वीकार करो






सचिन पुरवार (इटावा)

Saturday, 9 June 2012

कब तलक मुस्काऊंगा मैं




लूट कर ये वाह वाही कब तलक जी पाउँगा मैं
प्यार पाके बेमुरब्बत कब तलक मुस्काऊंगा मैं

बस करो तारीफ बस अब दो दुआ कर पाऊं कुछ मैं
ये हुआ तो वाह वाही गैरों से भी पाउँगा मैं ....










रचित - सचिन पुरवार जी

अदाएं कातिलाना


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देखने कि ये अदाएं इस तलक कातिल रखोगे
तो अदाएं कातिलाना मेरी भी तुझको दिखेंगी
कुछ अलग हट भी सोचो कातिलाना ढंग से जी
मस्त प्यारी सी नशीली आँखे भी तुझको दिखेंगी








सचिन पुरवार जी

समां बदल जायेगा


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गर थाम लो अपने हाथो में यूँ हाथ मेरा
दावा है मेरा, जहाँ बदल जायेगा
तुम दोस्तों से ही दुनिया है
हमें भी वो मान लो तो समां बदल जायेगा

न कोई है हसरत उमंगें न कोई
रहे दोस्त खुश बस हमेशा हमेशा
यही ख्वाब मौला तू साकार कर दे
उठती नहीं अब तरंगें भी कोई

ऐ मौला तू ले ले मेरी खुशियों के पल
चाहत यही दोस्त के नाम कर दे
उसे देखकर सच्ची खुशियाँ मिलेगी
ऐ मौला तू मेरा यही काम कर दे


रचित - सचिन पुरवार जी

Saturday, 2 June 2012

जय शनि देव


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"उठो दोस्तों आज शनि महाराज का दिन है भाई
चलो नहा धो कर हम सब मंदिर चलते हैं भाई

आओ चढ़ाएं तेल धूप नैवेध से पूजा करते हैं
शनि महाराज की कृपा बनेगी हम उनको खुश करते हैं

लौह देव तुम सुनो प्रार्थना हम सब शीश नवाते हैं
सबका तुम कल्याण करो हे देव यही हम चाहते हैं

जन जीवन में त्राहि त्राहि है सबके कष्ट मिटाओ देवा
सबके कष्ट हरो बस मुझको अपनी पूजा बताओ देवा

जन-जीवन कल्याण की खातिर मैं सब करने को तैयार
प्रेममयी संसार हो इतनी सुन्दर दुनिया बनाओ देवा

स्वार्थ भाव का नाश करो हे देव इसी में है कल्याण
सब सोचे बस भला एक दूजे का पायें सब सम्मान"


जय शनि देव

आपका अपना - सचिन पुरवार जी

दीपान्शी का CBSE परिणाम 12th


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जब अपने बच्चों का, अपने करीबियों का, अपने दोस्तों का रिजल्ट आउट होता है और जब marks above 70 होते हैं तो कितना अच्छा लगता है, कितनी ख़ुशी होती है,
ऐसे ही मेरी भांजी, "दीपान्शी" का CBSE intermediate का 28 may को रिजल्ट आउट हो गया और उसने 78 % अंक प्राप्त कर अपने परेंट्स का सीना गर्व से चौड़ा किया है,
दीपान्शी बेटा आपको बधाई हो एवं ईश्वर से आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ |

अब एक कविता तो बनती ही है न

"करो तरक्की इसी तरह तुम अपने जीवन में बेटा
करो नाम रोशन मम्मी पापा का ऐसे तुम बेटा
फूल तो कम हैं मिलेंगे कांटे जीवन की राहों में
कभी नहीं घबराना जीवन की राहों में तुम बेटा

पढने में जब मन न लागे यही सोच लेना तुम
वक़्त का काम है हर पल चलना यही सोच लेना तुम

चाहे वक़्त निकालो पढ़ के चाहे गोशिप करके
वक़्त का काम है हर पल चलना देखो कोशिश करके

रहो हमेशा खुश तुम बेटा रखो सबको तुम खुशहाल
सभी चुनौती को स्वीकारो यही सभी खुशियों का राज

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मित्रों बधाई और शुभकामनाओं से नवाजो बिटिया रानी को .... :-)


आपका अपना -सचिन पुरवार जी

Thursday, 31 May 2012

प्यार क्यों होता है ?




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चलो अंजली को आज बता ही देते हैं की प्यार क्यों होता है

सबसे पहले विज्ञान के तरीके से देखते हैं

ये एक चुम्बकीय आकर्षण होता है जी, जब एक लड़का किसी सुन्दर लड़की को देखता है या कोई लड़की किसी सुन्दर लड़के को....तब जो जिससे आकर्षित है उसके अन्दर जो मस्तिष्क से ह्रदय को जोड़ने वाली नस होती है उसमे रक्तस्त्राव बढ़ जाता है जब ये होता है तब धडकनें बढ़ जाती हैं और दिल से दिल का चुम्बकीय प्रभाव बढ़ जाता है , एवं दिल हिचकोले खाने लगता है ....तब हमें लगता है की यही प्यार है .... वास्तव में ये प्यार नहीं ...एक प्रकार का तीव्र आकर्षण होता है जी जो हमें एक दुसरे की तरफ खीचता है ....
ये तो हुई विज्ञान की बात

अब करते हैं आध्यात्म की बात

सुन्दरता आकर्षण का प्रमुख कारण होता है अंजली आपको अगर लगे कि आपको किसी से प्यार हो रहा है तो पहले दो बातें अपने मन से पूछें ..
१- मैं इसकी तरफ आकर्षित क्यों हो रही हूँ (इसके सुन्दर चेहरे, नैन नक्स को देखकर या उसके दिल की किसी अच्छी बात देखकर, उसके अच्छे स्वाभाव को देखकर)

२- कोई इससे सुन्दर हुआ तो कहीं मेरा प्यार इसके लिए फीका न पड़ जाये (चाहे ये चेहरे की बात हो या दिल की गहराई की)

आज कल के किशोरों में प्यार एक ऐसी चीज हो गयी है जो किसी रोज़ की दिनचर्या से कम नहीं है....
रोज प्यार होता है ... जितने जल्दी होता है उससे दुगनी गति से अलगाव(break up) भी

एक बात और ......
सभी लड़के और लड़कियों से

ये प्यार नहीं आकर्षण है मत पड़ना इसके चक्कर में
ये रंग बदलती दुनिया है पल पल में धोखे खाओगे
बस प्यार करो परिवार से तुम बस यही प्यार काबिल रिश्ता
क्यों व्यर्थ समय बर्बाद करो क्यों पड़े हुए हो चक्कर में

आकर्षण को प्यार न समझो प्यार नहीं होता दो दिन में
सालों साल दोस्ती चलती प्यार पनपता है तब दिल में
तुम करो दोस्ती सबसे ये रिश्ता है सबसे अच्छा
नहीं ये रिश्ता प्यार के जैसा कच्चा पक्का कच्चा....

आशा करता हूँ की अंजली के साथ ही साथ सभी मित्रों को  ये बात समझ में आ गयी होगी अगर आपको मेरी बात पसंद आई तो कृपया "like" button का प्रयोग करके अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करें
मेरी अन्य रोचक कविताओं एवं लेख पढने के लिए आप मेरे ब्लॉग एवं पेज में विजिट(visit) कर सकते हैं ... मेरे ब्लॉग का पता निम्नलिखित है
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मेरे पेज का पता
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धन्यवाद

आपका अपना - सचिन पुरवार जी

Tuesday, 29 May 2012

बाबू ... ये प्यार है


please click here

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सुन
सुन जरा
सुन ना
कुछ कहना है

वो पत्ती
उस पर वो शवनम की बूंद
जब जब देखूं

मुझे याद आये
बस तेरे होंठो की प्याली

वो मौसम
उस पर ये काली घटा
जब जब देखूं

मुझे याद आये
बस तेरे वो काले बाल

वो कटी पतंग
उस पर वो डोर
जब जब देखूं

मुझे याद आये
तेरी लहराती कमर


पर
जब जब मैं देखूं तुझे
कुछ और ना आये याद मुझे

क्यों ? ? ?

वो बोली
शरमा के

बाबू ... ये प्यार है ये प्यार है

आपका अपना - सचिन पुरवार जी

Sunday, 27 May 2012

क्राइम पेट्रोल


दोस्तों दोपहर की नमस्ते...


आज मन बड़ा आहत हुआ टेलीविजन में एक सीरियल देख रहा था क्राइम पेट्रोल
सारे देश का आइना देखने को मिल गया, जिसे देख कर मैं अपने आँशु न रोक सका और चुपचाप अपने कमरे में आकर फुट-फुट कर रोया,
बच्चे कितना दर्द सह रहे हैं | किसी का बाप उन्हें प्रताड़ित कर रहा है तो कुछ शिक्षकों का जुल्म, भारत देश का ऐसा कितना बड़ा भाग है जहाँ बच्चों को पैदा करते ही या तो भीख मांग कर कमाई करने के लिए छोड़ दिया जाता है या कहीं कवाड़ी की दूकान में कबाड़ा बीनने के लिए
बड़ा अफ़सोस होता है की जिस देश में हम रहकर गर्व का अनुभव करते हैं वहीँ पर हमें इतना शर्मनाक चीजों से आये दिन दो-चार होते हैं
 बच्चे अपने हैं तो हम उनका पल -पल ख्याल रखते हैं और पराये बच्चे अगर नाली से कवाडा बीनते दिख जाएँ तो हम उन्हें इतनी हेय की द्रष्टि से देखते हुए इस वाक्य से अपनी बात समाप्त करते हैं की "ये हमारी औलाद थोड़े ही है "
  क्या हमें आपको इसके विरोध कदम नहीं उठाना चाहिए
मित्रों हम क्या कर सकते है कृपया अपनी राय दें ताकि हम सब यहाँ पर अपने सकारात्मक विचारों से इस मिशन को सार्थकता पहुंचा सकें |

एक कविता के माध्यम से आप तक अपनी बात
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"ह्रदय भरा था करुणा से त्श्वीर देख भारत माँ की
जो भविष्य हैं कल के उनकी सूरत कुछ ऐसी देखी

पैदा करके छोड़ दिया इंसान नहीं हैवान हो तुम
पशु भी अपना बच्चा पाले उससे भी गए गुज़रे तुम

बीन कबाड़ा चोरी करके भीख मांगकर पालें पेट
बड़ी हेय की द्रष्टि से ये सब बन कर देख रहे हम सेठ

पढने मस्ती करने खेल कूदने के दिन पार हुए
वो अबोध नादान परिंदे क्या जाने दिन चार हुए

घर के और स्कूल के ताने बचपन में वो खूब सहे
उनका बचपन घंटी माफिक एक नहीं दस बार बजे

अपील              

हाथ जोड़ कर करूँ अपीले बच्चों के प्यारे माँ बाप
ये बगिया की फुलवारी हैं ढंग से सींचो इनको आप

गर्व आपका ये हैं इक दिन नाम फतह कर देंगे जी
खुशबु अभी आपके घर में महका देंगे दुनिया जी"

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(मैंने जानबूझ कर ये विदेशी तश्वीर लगाई है ताकि विदेशी हमारे देश का मजाक न बना सकें)

घर के मामले हैं घर में ही सुलझने दो,
लोग थू-थू करने में कहाँ वक़्त लेते हैं ...


आपका अपना - सचिन पुरवार जी

Saturday, 26 May 2012

धीरे धीरे


यूँ तो बदल रहे हैं हम आप धीरे धीरे 
कुछ खास लग रहे हैं अंदाज धीरे धीरे
कुछ धडकनों की खातिर कुछ आशुओं के डर से
बस मुसुकुरा रहे हैं हम आप धीरे धीरे


सचिन पुरवार जी

Friday, 25 May 2012

पेट्रोल के दाम छूते आसमान


पेट्रोल के दाम की कीमत जैसे पेड़ खजूर
गाड़ी को मिलना नहीं, मालिक है मजबूर

पंजे की सरकार में नेता सब बेकार
खून चूसने को सब बैठे खोले दांत हज़ार

पेट्रोल की लग गयी साढ़े साती भाई
जैसे बूंद जिन्दगी की दो वैसे लेव चुवाई

सबसे बढ़िया सायकिल समाजवाद है भाई
खींच-खींच पहुँचो गंतव्य अच्छी कसरत भाई

बीत गए दिन खूब अब कांग्रेस के राज में
कोई नहीं दम अब रही मनमोहन के ताज में

राज चलायें देश में राजद्रोह गद्दार
कैसे पनपे देश जब हाथ इनके हथियार


थाम लो भइयों हाथ में लाठी तीर मशाल
देशद्रोहों को देश से गोली मार निकाल


रचित - सचिन पुरवार जी

Tuesday, 22 May 2012

नयी सुबह की नयी ताजगी


आओ दोस्तों नयी सुबह की नयी ताजगी में हम जी लें
स्वच्छ वायु और सूर्य किरण के अर्क को हम जी भर के पी लें

सुबह सुबह का जल्दी उठना भरे ताजगी नयी उमंगें
मन का सागर भी उफान ले और जन्म लें नयी तरंगे

करो नाश्ता फला-हार का मित्रों तुम न जाना भूल
खुश रहने का और स्वस्थ रहने का बस ये एक ही रूल

प्रभु का करो ध्यान तुम बन्दे, उससे ही संसार चले
रिद्धी-सिद्धि और धन बरसा हो जिससे की परिवार चले

रचित - सचिन पुरवार जी



Sunday, 20 May 2012

लहराती कमर


ओ प्रियतमा

तू मिली अभी मुझको सजनी
तेरा रुप रंग तेरा, अंग-अंग
मदहोशी की तू है अगनी
चंचल यूँ मस्त अदाओं में
तू कितनी प्यारी लगती है

तेरे गाल गाल तेरे होंठ-होंठ
तेरी बल खाती लहराती कमर
जैसे पत्तों पर कोई ओस-ओस
कर गयी मुझे ये दीवाना
खामोश निगाहें ओत-प्रोत

तेरी पायल की छन छन छन
छन छनकरते  करते तेरे कंगन
तू निधि मैं हूँ निधिनाथ तेरा
तेरी याद दिलाये अब हर पल

तेरे नाम की उपमा है किससे
कितना अब हूँ मैं हर्ष-हर्ष
तेरी याद चुभे जैसे वर्तिका
ओ मेरी हर्षिका मेरी हर्षिका मेरी हर्षिका.......


रचित - सचिन पुरवार जी

भाई-बहन का प्यार


समर्पित ये  भावपूर्ण कविता  मेरी बहनों को
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"यूँ तो रिश्ते कई जगत में, प्यारा इक संसार
उनमे से इक ये रिश्ता भी, भाई-बहन का प्यार

बहने चिड़िया धूप सी, दूर गगन संसार
उनमे से इक ये रिश्ता भी, भाई बहन का प्यार

गलती करे और माँ डांटे, तब बस वो मुझको ही ताके
ऐसी उसकी आस
कितना प्यारा रिश्ता ये  है, ये भाई बहन का प्यार

मैं भी करूँ गलतियाँ तब बस वो ही मुझे बचाए
जादू की झप्पी भी दे वो अपनी गोद लिटाये
कितना  वो रखती है मेरा पल-पल हर पल ख्याल
कितना प्यारा रिश्ता ये  है ये, भाई बहन का प्यार

पड़े जरुरत मुझको तब वो कभी न पीछे हटती
सारे काम चलाती मेरे, मदद वो हर पल करती
कितना वो रखती है मेरा पल-पल हर पल ख्याल
कितना प्यारा रिश्ता ये  है ये भाई बहन का प्यार

प्रीत पराई सी तू बहना इक दिन मुझे रुलाएगी
छोड़ के जब तू बाबुल घर प्रियतम के को घर जाएगी
फिर  भी तू रखती है मेरा पल-पल हर पल ख्याल
कितना प्यारा रिश्ता ये  है ये भाई बहन का प्यार"
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रचित - सचिन पुरवार जी            

Friday, 18 May 2012

नज़र नज़र में


नज़र नज़र में नज़र यूँ बोली
नज़र मिला लो नज़र में हमसे
नज़र मिलेगी यूँ जब नज़र से
नज़र में होगी नज़र दीवानी

नज़र का सपना नज़र ने देखा
नज़र झुक गयी नज़र से ऐसे
उठी नज़र जब नज़र कसम से
मिले दो दिल थे नज़र-नज़र में


-  सचिन पुरवार जी

खूबसूरत चेहरे


"लड़की दिल से सुन्दर हो तो समझ आती है,
खूबसूरत चेहरे पे तो सड़कछाप भी मर-मिटते हैं"

सचिन पुरवार जी

Thursday, 17 May 2012

उम्र यूँ ही तनहाइयों में तमाम होगी

"मैंने इक रात तन्हा गुजारनी चाही रूठकर उनसे 
क्या पता था उम्र यूँ ही तनहाइयों में तमाम होगी 

सारी दुनिया से छिप के इक घरौंदा बनाया था 
क्या पता था ये जिन्दगी इस कदर आम होगी 

तबाह करना जिन्दगी कोई सीख लो उनसे 
खुदगर्ज़ वो नहीं हैं मुफ्त में सिखायेंगे 

माना था उनको कल भी आज भी वो अपने हैं 
ये जानते हुए वो जान ले के जायेंगे"

रचित - सचिन पुरवार जी                                     

Monday, 14 May 2012

सुपर डुपर हो जायेंगे


मित्रों सुप्रभात 
आपके लिए प्रस्तुत है एक ताज़ा-तरीन प्रातःकालीन कविता 




"नयी सुबह की नयी ताजगी नया रंग बिखराती है 
धो देती है आलस सारा अंग-अंग महकती है


सूर्यदेव के उठने से पहले उठ जाओ मित्रों आप
दिनचर्या जो सुबह की है वो भी जल्दी निपटा लो आप


करो नाश्ता सुबह सुबह ही इसको बिलकुल मत टालो
फलाहार या हल्का फुल्का जो भी खाओ वो खा लो


नित ये काम करोगे तो दिन सुपर डुपर हो जायेंगे
कार्य क्षेत्र में भी उपलब्धि मित्रों निश्चित पाएंगे"


रचित - सचिन पुरवार जी

बहनें चिड़िया धूप की


चार पंक्तियाँ मेरी प्यारी-प्यारी बहनों के लिए 


"बहनें चिड़िया धूप की, दूर गगन से आयें 
हर आँगन मेहमान सी, पकड़ो तो उड़ जाएँ,
आँगन-आँगन बेटियां छांटी बाँटीं जाएँ
जैसे बालें गेहूं की, पकें तो काटी जाएँ ।"

समझने की कोशिश करो


समझने की कोशिश करो


Try to understand 


बच्चा चीख रहा है, चिल्ला रहा है, उछल रहा है और तुम अपना अख़बार पढ़ रहे हो, दो कौड़ी का अखबार ! तुम भी जानते हो की उसमे क्या है ? लेकिन तुम बैचेन हो जाते हो, तुम बच्चे को रोकते हो : चीखो मत ! डैडी को डिस्टर्ब मत करो ।' डैडी बड़ा महान काम कर रहे हैं -अखवार पढ़ रहे हैं ! और तुम उस नाचती गाती उर्जा को रोक रहे हो, उस निर्झर को बांध रहे हो, तुम उस रोशनी को , साक्षात् जीवन को रोक रहे हो । तुम हिंसक हो रहे हो ।


और मैं ये नहीं कह रह हूँ की बच्चे को हमेशा आपक परेशान करने दें ।लेकिन सौ में से निन्यानवे मौकों पर तुम व्यर्थ में परेशान होते हो, और अगर उन निन्यानवे मौकों पर तुम उसे मत दांतों तो बच्चा तुम्हें समझता है । बच्चे बहुत ही अच्छा प्रति संवेदित करते हैं । जब वह देखता है की तुम उसे कभी नहीं रोकते, तो एक बार यदि तुम कहते हो कि 'प्लीज, मैं काम कर रहा हूँ ...'तो बच्चा समझ जायेगा कि यह संवाद ऐसे माँ बाप से नहीं आ रहा है जो निरंतर डांटने का बहाना खोज रहे हैं, बल्कि यह ऐसे माँ बाप से आ रहा है, जो हर चीज कि अनुमति देते हैं । बच्चों कि अलग द्रष्टि है ।
बच्चों का अपना देखना है, अपनी समझ है, अपने तरीके हैं, उन्हें समझाने कि कोशिश करो । समझदार ह्रदय पायेगा कि उसके और बच्चे के बीच एक गहरा तालमेल पैदा हो रहा है । वह तो मूढ़ , अचेतन , नासमझ लोग हैं जो अपनी धारणाओं में बंद रहते हैं और दूसरे कि और देखते ही नहीं ।
बच्चे संसार में ताजगी लाते हैं । बच्चे जीवन में भगवता का नया प्रवेश हैं । उन्हें आदर दो, उन्हें समझाने का प्रयास करो ।




ओशो 

"ये ख्वाहिशों का मंजर


"ये ख्वाहिशों का मंजर कैसा अजीब है
ये चाहतों का दरिया कैसा सजीव है
प्यार तो है उनसे ये मानते हैं हम 
कुछ छिपाना कुछ बताना कितना अजीव है"


सचिन पुरवार जी 

हे माँ...ओ माँ (Mother's day-13-may-12)


दोस्तों आज तो माँ का दिन है ...वैसे तो सारे दिन ही माँ के दिन होते हैं पर आज का दिन कुछ खास है जो हमें अपनी माँ के लिए कुछ करने को प्रेरित करता है ।
मैंने सुबह उठते ही उनके चरणस्पर्श किये एवं आज के दिन को खास बनाने के लिए आज मैं उनको अपना पूरा वक़्त दूंगा ... उनके कार्यों में उनकी मदद करूँगा तथा शाम को इस खास दिन को केक के साथ सेलिब्रेट करूँगा ।

समर्पित एक कविता मेरी माँ को 


हे माँ...ओ माँ 


इस दुनिया में कोई नहीं है मात तुम्हारे जैसा 
इस संसार में लाकर मुझको उपकार किया है कैसा


कितना दर्द सहा है तूने पेट में मुझको रखकर
शील, धीर तू धैर्य की देवी सहन करे सब हँसकर
रखा इक इक कदम फूंक कर मेरी खातिर हे माँ
और नहीं कोई इस दुनिया में तुझसे ज्यादा बढ़कर 


बिना स्वार्थ के तू करती है काम मेरे तू सारे
तू कितनी अच्छी है कितनी भोली मेरी माँ रे
तू भूखी सो जाए मुझको देख नहीं सकती भूखा
नहीं मिलेगा कोई तेरे जैसा मेरी माँ रे


मैंने कितने कष्ट दिए बचपन में खूब शरारत करके
तुने ही हिम्मत है बढाई जब भागा किसी से डर के
एक तू ही तेरी ही कृपा है आज अगर कुछ हूँ मैं 
भावनाओं से सरोकार हूँ माँ मुझको हग कर ले 


दूँ न कभी कोई गम तुझको हर पल मैं ये सोचूं
तेरे भी अरमान थे कुछ बचपन में वो भी कर दूँ


क्षमा दान चाहूँगा गलती रोज नयी मैं करता हूँ 
पर मैं सोचूं हर पल तुझको कोई कष्ट न मैं दूँ


अश्रुधार बह चली मेरी ये कविता लिखते लिखते
नहीं चुका पाउँगा तेरे कर्ज मैं मरते मरते
सभी मात के बेटों से मैं यही अपीलें करता हूँ
कष्ट न देना माँ को ममता की सौगंध मैं देता हूँ 


रचित - सचिन पुरवार जी 

खुद को अमर तो कर लो


कुछ करने से कुछ होता है
कुछ होने से कुछ मिलता है 
कुछ मिलने से जो ख़ुशी मिलती है
उसका जबाब तो किसी के पास न होता है 


इसलिए सोचा कि कुछ सोच के लिख लूँ
दरिया में उतरा हूँ तो साहिल की खोज कर लूँ
यूँ तन्हा वक़्त गुजरने से क्या मिलता है
बस कविता के सहारे ही दुनिया की सैर कर लूँ 


अस्तित्व मिट जायेगा इक दिन कुछ कर्म भी तो कर लो
तपा के खुद को कर्म का एक जाम भी तो पी लो
मिटटी से आये हैं सभी मिल जाना है इसी में 
कुछ कर्म यूँ करो कि खुद को अमर तो कर लो 




रचित - सचिन पी पुरवार 

फलक तक




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यूँ तो बहुत कुछ मिला है अभी तक 
पर खोज जारी रहेगी फलक तक 


ये नदियाँ ये पर्वत ये धरती ये अम्बर
रहेंगे हमेशा यहीं पर रहेंगे


जाना हमें और तुमको यहाँ से
तो क्या है हमारा जो हम न रहेंगे


अहंकार फिर भी भरा नव्ज़ नस में 
जाने हैं सब कुछ कि कुछ कर न लेंगे
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रचित - सचिन पुरवार जी 

सुबह सबेरा


सुप्रभात मित्रों




सुबह सबेरा कितना सुन्दर मौसम लेकर आया
सूर्यदेव की कृपा से फिर ये सुप्रभात हो पाया


व्यर्थ न जाने दो मित्रों इस पावन समय की वेला को
प्रातःस्मरण पाठ करें हम सुन्दर कर दें वेला को


तत्पश्चात उठें हम दें सारे नित कार्यों को अंजाम 
करते हुए नाश्ता पढ़ें नितपत्र बढाएं अपना ज्ञान 


उसके बाद नहाकर ऑफिस वाले भैया ऑफिस जाएँ
बिजनेस वाले भैया भी अपने बिजनेस पर समय से जाएँ 


मध्य भोज की वेला पर हल्का ही भैया खाना खाएं
तरल पदार्थों की मात्रा अपने भोजन में खूब बढाएं


इस सुन्दर और सरल तरीके से गर्मी पर काबू पायें
रात में टी.वी देखें और फिर फेस बुकिंग करके सो जाएँ .....




रचित - सचिन पी पुरवार

बदन संगमरमरी




वाह ! क्या मस्त अदा तेरी
वाह ! पलकें ठहर गयीं मेरी
वाह ! तेरा मस्त मगन अंदाज 
वाह ! तेरा क्या सुन्दर आगाज 


तेरी मस्त जवानी वाह !
तेरे होंठ गुलाबी वाह !
तेरा कातिल मुस्काना वाह !
तेरे काले कुंडल भी वाह !


वाह ! तेरा बदन संगमरमरी
वाह ! तू लगे कि कोई परी
वाह ! कुछ कहती ये आँखें
वाह ! जैसे सावन की रातें


तूने तो कुछ कर दिया वाह ! वाह !
तूने दिल चुरा लिया वाह ! वाह !
तेरा आलिंगन वाह ! वाह ! वाह !
तेरा वो चुम्बन वाह ! वाह ! वाह !


मुझको सब याद आ रहा है .... 
दिल मेरा धड़का रहा है ....


तेरा चलना बल खा के ....
तेरा झुकाना शरमा के ....
तेरी पायल कि छनछन ....
तेरे यौवन कि गुंजन ....


तेरी नाजुक सी कमरिया ....
उसपे ये वाली उमरिया ....
अब तो ढक ले तन को साकी .... 
कहीं न लग जाए नजरिया ....


तेरी तारीफों का मंजर ....
कभी कम हो न पाए ....
क्या करूँ तू है सुन्दर ....
नज़र हम कैसे झुकाएं ....


समझ कुछ आये जवाब अगर ....
देना फिर भी सोच समझकर ....
मैं तो दीवाना ठहरा ....
दिल पे है दर्द भी गहरा ....




रचित - सचिन पुरवार जी

पलके ठहर गयीं


दोस्तों आज आपके सामने फिर से पेश करते हैं एक रोमांटिक सी कविता 


तू परी या कोई अप्सरा
तेरे यौवन ने मुझको छला
जैसे कोई छलता है छलिया 
फिर दिल जला दिल जला दिल जला


पीना है रस तेरे होंठों का
जो किये गुलाबी तूने हैं
कुछ असर प्यार का है तुझपे 
तेरे नयन बताएं जो सूने हैं 


तेरे पग से लेकर सर तक 
जो आकर्षक श्रंगार लदा 
जिसे देख के पलके ठहर गयीं
कह दूँ मैं सारी दुनिया को मेरा यार सजा मेरा यार सजा......


रचित - सचिन पुरवार जी

आप का दिन शुभ हो


प्रातः काल का मनोरम द्रश्य कितना लुभावना होता है , वातावरण कितना सुन्दर एवं प्रदुषण रहित होता है , तो क्यों न हम इस सुन्दर सवेरा का लुत्फ़ उठायें ...... देखिये पंक्षी भी सुबह सैर को निकल पड़े ...... आओ टहलने चलें ताकि सुबह की ताज़ी वायु हमारे फेफड़ो में पहुँच कर हमरे रक्त एवं मन को शीतलता प्रदान करे भोर बही उठ जाओ मित्रों ♥ खूब सो लिए आओ मित्रों ♥ मेरे संग अब सैर भी कर लो ♥ प्रातः काल आनंद से भर लो ♥ इतना शुद्ध समय होता ये ♥ सारे दिन ना रहता है ♥ रहना स्वस्थ अगर है मित्रों ♥ बात मान लो मेरी ये ...... ♥ आप का दिन शुभ हो

ओ प्रियेसी


ओ प्रियेसी
मेरी प्रियेतमा
कहाँ छिपी तू बैठी है
मुझे क्यों इतना रूठी है

तू बोल तुझे वो लाकर दूँ
जो चाह तेरी वो लाकर दूँ

वाली उमरिया ये कमसिन जवानी
कितना सताओगी ओ मेरी रानी

तू चंचल मस्त जवानी से
यूँ मस्त हवा के झोंके से
पल्लू चेहरे पर डाल गयी
मुझे लूट गयी तू धोखे से

आ जाओ तुझे बस छू लूँ मैं
ये जीवन अमृत कर लूँ मैं 

तेरे दीदार को तरसा मैं 
तेरे श्रृंगार को तरसा मैं

तेरी तुलनाओं में कोई नहीं
सारी दुनिया देखी मैंने



रचित - सचिन पुरवार जी

गुज़ारा नहीं जाता......


एक समंदर है जो मेरे काबू में है,


एक कतरा है जो मुझसे संभाला नहीं जाता,


एक उम्र है जो बितानी है उसके बगैर,


और एक लम्हा है की मुझसे गुज़ारा नहीं जाता...... 





यूँ खुले आम कहाँ चल दिए...



लाल साड़ी में यूँ खुले आम कहाँ चल दिए 
हाथो में ये कंगन लिए कहाँ चल दिए
क्या अदा मुसुकाने की क्या नज़रें मिलाने की
शरमा तो हम गये देख अदा आपके बल खाने की


ये तेरा यौवन तेरा ये रंग ऐ हुश्नो परी 
पल नहीं हर पल नहीं पल पल सताए हर घडी
एक ये मुस्कान हो बस झेल लूँ तो ओ सनम
याद आता है तेरा नज़रें मिलाना हर घडी 


रचित - सचिन पुरवार जी 


Singh is King


मित्रों कृपया ध्यान दीजिये


हम सभी को सरदारों पर जोक बनाना बड़ा ही अच्छा लगता है पर क्या हम जानते हैं कि केवल सरदार ही सबसे ज्यादा कठिन परिश्रमी, समृधि संस्था वाले होते हैं 
आपके सामने एक घटना प्रस्तुत है
मैं इसे आप सबसे शेयर करना चाहता हूँ 


पिछली गर्मियों के दौरान मेरा कुछ मित्र दिल्ली गये...उन्होंने स्थानीय जगह के लिए किराये पर एक टेक्सी की जिसका ड्राइवर एक वृद्ध सरदार था ... उन्होंने उस वृद्ध सरदार को परेसान करने के लिए सरदारों पर जोक मरने शुरू कर दिए ... अब उनके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही जब उन्होंने उसे किराया भुगतान किया .... उस सरदार ने मेरे उन दोनों मित्रों से किराया नहीं लिया बल्कि इसके स्थान पर उन दोनों को एक-एक रुपया अधिक देते हुए बोला, " मेरे बच्चों, तुम दोनों सुबह से सरदारों पर जोक मर रहे हो... मुझे बहुत बुरा लगा" फिर भी मैंने इसे दिल से नहीं लिया, तुम लोग युवा पीढ़ी के हो अभी बहुत कुछ देखना वाकी है .... अब मैं तुम्हें एक रुपया दे रहा हूँ । इसे तुम किसी ऐसे पहले सरदार को दे देना जो भीक मांगता दिखी दे जाये
मेरे मित्र आज भी वो रुपया ले क्र घूम रहें पर उन्हें कहीं ऐसा सरदार नहीं मिला जो भीख मांगता हो


सीख - सरदार लोग पूरी तन्मयता के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं .... वे कोई भी काम कर सकते हैं जैसे ट्रक चलाना, फलों का ठेला लगाना आदि ..पर कभी भीक नहीं मांगते
इसीलिए उन पर जोक मरना बंद करो और उनसे कुछ सीख लो ........


हम भी आपके साथ हैं


 सचिन पुरवार जी 

Saturday, 12 May 2012

चार दिन की जवानी


जिए जा रहा हूँ
जिए जा रहा हूँ
प्रेम रस का पियाला 
पिए जा रहा हूँ

चार दिन की जवानी 
ये दिन मौज के हैं
मस्तियों के साथ में 
हंसा जा रहा हूँ

उम्र कोई भी हो 
हिचक न हो कोई
उम्र ढलेगी तो झुर्री पड़ेंगी 
पर दिल की जवानी 
कभी खत्म न हो
हो ये अठारह
या अस्सी का कोई 

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सचिन पुरवार जी

मेरी प्रियेतमा



ओ प्रियेसी
मेरी प्रियेतमा
कहाँ छिपी तू बैठी है
मुझे क्यों इतना रूठी है

तू बोल तुझे वो लाकर दूँ
जो चाह तेरी वो लाकर दूँ

वाली उमरिया ये कमसिन जवानी
कितना सताओगी ओ मेरी रानी

तू चंचल मस्त जवानी से
यूँ मस्त हवा के झोंके से
पल्लू चेहरे पर डाल गयी
मुझे लूट गयी तू धोखे से

आ जाओ तुझे बस छू लूँ मैं
ये जीवन अमृत कर लूँ मैं

तेरे दीदार को तरसा मैं
तेरे श्रृंगार को तरसा मैं

तेरी तुलनाओं में कोई नहीं
सारी दुनिया देखी मैंने


रचित - सचिन पुरवार जी

प्यार में धोखा




"कर अदा सभी किरदारों को बैठता हूँ मैं तालमेल
पी घूंट जहर सा हर पल मैं खेलूं जैसे कोई खेल खेल
हर रंग दिखाया उसने अपना नहीं कसर कोई छोड़ी
यूँ कहने को आजाद तो हूँ पर रहता हूँ मैं जेल जेल


इस रंग बदलती दुनिया में बदला उसने अपना भी रंग
जैसे नैया साहिल छोड़े उसने छोड़ा मेरा भी संग
अब तक इस गलफ़त में मैं रहा जैसे न छिपा कुछ मुझसे था
पर परतें खुलीं तो वाह भाई वाह मैं पूर्ण रूप से हुआ था दंग


यूँ तो हमने अब तक उनको आँशु के सिवाह कुछ भी न दिया
खूब रुलाया था उनको फिर खूब मानना खूब हुआ
उनकी हर एक एक सांसों में की थी हमने खुशियों की दुआ
बस एक सच्चाई के बदले उसने हमको तन्हा छोड़ दिया


अब क्या शिकवा क्या गिला करूँ तौहीन मुहब्बत की होगी
इस हाल में हमको छोड़ दिया रंगीन जवानी क्या होगी
देते तो सजा जो गलती थी इंसान ही करता गलती है
यूँ छोड़ दिया तन्हा मुझको अब तेरी सजा भी क्या होगी


माफ़ करो हम नतमस्तक तेरे दर में हम झुके हुए
तेरी करता हूँ पूजा ओ सरकार यहाँ पर खड़े हुए
पर मत कहना अब कभी कि मुझको प्यार नहीं करना
नहीं चाहिए कुछ हमको बस प्यार करेंगे झुके हुए"


रचित - सचिन पुरवार जी  

ये मुहब्बत की राहें




"कितनी आसान है ये मुहब्बत की राहें,
प्यार यूँ चलते-२ राह पे हो जाता है
कितना हसीं लगता है ये जहाँ 
जब किसी को किसी से प्यार हो जाता है

जब प्यार के दिनों की होती है शुरुआत
कितने खुबसूरत होते हैं हालत
ये नदियाँ, पवन घाटियाँ लगती हैं अच्छी 
जब पनपते हैं दिल में प्यार के जज्बात

ऐसी ही कोई अपनी कहानी थी
अपनी होते हुए भी बेगानी थी
मिली क्या खूब सजा इस प्यार के मजे की
आज अपनी हकीक़त है जो कल किताबों की जुबानी थी

मुझे उनसे प्यार था उन्हें भी थी हमसे मुहब्बत
क्या मस्त दिन थे वो क्या मस्त थी हमारी किस्मत
कल तक जो करते थे हमसे प्यार के दावे
आज बनकर रह गये हम बस उनकी इक खिदमत

हमें आज भी है उनके लौट आने का इंतज़ार 
ये जानते हुए भी की उन्हें हमसे नहीं है जरा सा भी प्यार 
पर क्या करें ये प्यार इतना नादाँ ही होता है 
गुंजाईश नहीं ऐतवार की और हम करते हैं इज़हार

ऐ खुदा दे अक्ल उनको प्यार मुझसे वो करें
दिन महीने साल और हर साल मुझपे वो मरें
ऐ खुदा ये नेक करतब कब तलक हो पायेगा
जब तलक हो पाए पर वो खुश रहें वो खुश रहें"


रचित - सचिन पुरवार जी 

Wednesday, 9 May 2012

हे राम


हे राम तुम्हारी दुनिया में कैसे विचित्र हैं लोग यहाँ
कुछ कहते हैं करते हैं कुछ आते हैं कहाँ जाते हैं कहाँ
तेरी लीला ये जानके भी इतराते हैं किस बात पे ये
जाना एक दिन संसार से है जाएगा न कुछ साथ वहां


रुपया पैसा धन दौलत और ये अहंकार सब व्यर्थ मित्र
करोगे जैसा मिलेगा वैसा अच्छा या फिर बुरा चित्र
बस प्यार करो तुम लोगों से ये ही बस जायेगा साथ वहां
जाना एक दिन संसार से है जाएगा न कुछ साथ वहां


रचित - सचिन पुरवार जी