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Monday, 14 May 2012
"ये ख्वाहिशों का मंजर
"ये ख्वाहिशों का मंजर कैसा अजीब है
ये चाहतों का दरिया कैसा सजीव है
प्यार तो है उनसे ये मानते हैं हम
कुछ छिपाना कुछ बताना कितना अजीव है"
सचिन पुरवार जी
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