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Sunday, 6 May 2012

यूँ कमरे की तन्हाई में


Sachin Purwar ji
January 26-2012


तुम कहाँ गयीं थी छोड़ मुझे
यूँ कमरे की तन्हाई में


तन्हा तन्हा सा मैं उदास
तुम शामिल थीं रुसवाई में


सुनकर मेरी ये बात सखी
मुसुकाई थी शरमाई थी


झुक कर मेरी और जरा
बल खाई थी-बल खाई थी


बल खाना बड़ा ही चंचल था
उत्तर भी बड़ा ही सुन्दर था


कहती तुम तन्हा कहाँ से थे
आँशु तो तुम्हारे साथी थे


जब मैं न हुई तब आँशु हैं 
तन्हा तुम कैसे कहते हो


जब मैं भी नहीं आँशु भी नहीं
तब भी न होगी तन्हाई


यादों से बड़ी कोई दोस्त नहीं
उससे न होगी रुसवाई


फिर से मैं हुआ निरुत्तर था
क्या लाजबाब सा उत्तर था


रचित - सचिन पुरवार जी

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