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"बस यूँ ही बैठा तो मन किया,
कि कुछ लिख लूँ तो कैसा रहेगा
तो दिल ने कहा लिख लो हुजुर
मगर लिखना जो मुझे बताना जुरूर
तो मैंने कहा ओ मेरे दिलवर
लिखूंगा तो वही तू बतायेगा सितमगर
तो दिल ने कहा बड़ी मासूमियत से
क्यों भागे है तू हकीकत से
तेरी महबूबा को तूने दिया है मुझे
अब मै क्या बताऊँ तू क्या है लिखे
अब तो पूँछ तू अपनी महबूबा के दिल से
दे दी है जिसको जगह मेरी कल से
किया मेरे दिल ने मुझे लाजबाब
सुनते ही मासूमियत सा जबाब"
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रचित - सचिन पुरवार जी
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