जिन्दगी तू क्या है मुझे बताएगी
या ये बताने में सारी जिन्दगी लगाएगी
बचपन से जवानी तक १ बात सीखी
ये कभी रुलाएगी, कभी हँसाएगी और कभी जीना सिखाएगी
हँसता था बचपन मेरा क्या खूब मस्तियों के दिन थे
सारी शर्तों को मनवाने के मतवाले वो दिन थे
मम्मी ने फिर नाम लिखाया एक दिन एक स्कूल में
पर न लगता था मन मेरा कुछ दिन तक स्कूल में
एक दिन फिर कुछ ऐसा होया टॉफी दी थी मैडम ने
तब तो फिर अच्छा लगता था मुझको बस स्कूल में
मारा पीटी और शरारत शैतानी के क्या दिन थे
उठकर गिरना गिरकर उठाना रोने लगना क्या दिन थे
फिर हम जब थे बड़े हुए कॉलेज में आना खूब हुआ
टांग खिचाई करना सबकी और खिंचाना खूब हुआ
चुप के देखना उस लड़की को जिसकी भूरी आँखें थी
उनको फिर लव लेटर लिखना जिनकी प्यारी बातें थीं
करके याद पुरानी बातें हँस देना और रो देना
यादों के बीजों को फिर से पन्नों में ही बो देना
वक़्त बदलते देर न लगती यादें ही रह जातीं हैं
पल पल में हैं पलक झपकती सांसें भी खो जातीं हैं |
रचित - सचिन पुरवार जी
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