"बस तुम्हारे लिए
बस तुम्हारे लिए
मैं जीता रहा बस तुम्हारे लिए
न था मकसद कोई न कोई आरजू
प्रेम पाकर तुम्हारा मैं जीता रहा
पीता रहा हाँ मैं पीता रहा
प्रेम प्याला निराला मैं पीता रहा
हाँ मैं जीता रहा
मेरे आँशु भी थे प्रेम प्यालों में जी
दिल भी खोया रहा था ख्यालों में भी
दिल में वो बस गयी थी लहू की तरह
वो ख्यालों में थी बस जुनूं की तरह
हम थे उनके थे वो भी हमारे पिया
बिन उनके तो अब कैसे जाए जिया
छोड़ दो हमको तुम अब मेरे हाल पर
न मेरे हाल पर अब तरस खाओ तुम
छोड़ दो मुझको मुझ पर तरस खाओ तुम
वो न छोड़े हमें हम न पकड़ें उन्हें
पहले छोड़ा था हमको क्यों उत्तर तो दो
बोली देखन गयी थी मैं दुनिया को जी
होगा तुमसे भी अच्छा कोई हमसफ़र
थी मैं कितनी गलत सोचती हूँ मैं अब
माफ़ कर दो मति मर गयी थी हाँ तब
कर दिया माफ़ उसको थी दरिया दिली
शिद्दतों बाद फिर थी वो मुझको मिली
रचित - सचिन पुरवार जी
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