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Wednesday, 9 May 2012

अंग अंग थिरकाती कविता


कविता कविता कविता कविता
मेरी कविता तेरी कविता


कुछ कुछ कहती है ये कविता
नित नई सोच जगाती कविता


राजा और रानी की कविता
नित मुझको बहलाती कविता


इसकी लय में मैं खो जाता
चाँद की सैर कराती कविता


लोरी गाती इक माँ को ये
नित नए शब्द सुझाती कविता


मैं इसका जब पाठ करूँ तब
अंग अंग थिरकाती कविता


जब मैं सोचूं तुझको तब तब
नयी नयी पंक्ति बनाती कविता


जब मैं तुझसे बात करूँ तो
गध से पध बनाती कविता


पूनम की जगमग रातों में
कोई नया मैं गीत लिखूं जब


चंचल झोंखों सी थपकी दे
करे शरारत मेरी कविता


आ तुझको रसपान करा दूँ
रोम रोम सहला दूँ मैं


तेरे दुःख और करुण ह्रदय को
सुन्दर शांत बनाती कविता


मेरे मित्रों लाइक करो
और करो टिप्पड़ी जमकर तुम


स्वांस स्वांस और रोम रोम में
नित नयी जान जगाती कविता




रचित - सचिन पी पुरवार

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