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Tuesday, 8 May 2012

स्पंदन करती पलकें


जब से देखा मैंने तुझको
कोई नहीं भाता मुझको


तेरा हँसना तेरा रोना
कितना सनम लुभाए मुझको


तेरा आना तेरा जाना
तेरा पल पल में मुस्काना


एक घड़ी में हँसना
दूजी घड़ी उदास हो जाना


तेरी आँखों के मोती
स्पंदन करती पलकें


तेरे दर्शन को ऐ सजनी
मरे नैना तरसें


देख के तेरे तेरे अधर गुलाबी
शरमा जाए गुलाब


चले जो तू बल खा के
छलके प्याला जाम शराब


तेरा चलना तेरा पग पग धरती पे यूँ रखना
है ये अदा कमायत की मादकता से ये नैना


कल्पनाओं के भंवर में मैं खो सा गया
जब मैं जगा तेरा हो सा गया ।


सचिन पुरवार जी 

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