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Sunday, 20 May 2012

लहराती कमर


ओ प्रियतमा

तू मिली अभी मुझको सजनी
तेरा रुप रंग तेरा, अंग-अंग
मदहोशी की तू है अगनी
चंचल यूँ मस्त अदाओं में
तू कितनी प्यारी लगती है

तेरे गाल गाल तेरे होंठ-होंठ
तेरी बल खाती लहराती कमर
जैसे पत्तों पर कोई ओस-ओस
कर गयी मुझे ये दीवाना
खामोश निगाहें ओत-प्रोत

तेरी पायल की छन छन छन
छन छनकरते  करते तेरे कंगन
तू निधि मैं हूँ निधिनाथ तेरा
तेरी याद दिलाये अब हर पल

तेरे नाम की उपमा है किससे
कितना अब हूँ मैं हर्ष-हर्ष
तेरी याद चुभे जैसे वर्तिका
ओ मेरी हर्षिका मेरी हर्षिका मेरी हर्षिका.......


रचित - सचिन पुरवार जी

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