
जितनी सुन्दर आप हो गुडिया उतनी सुन्दर रचना है
इक इक शब्द में जान भरी है क्या सुन्दर संरचना है
मन को भा जाती है मेरे पंक्ति पंक्ति इस कविता की
पढ़ता हूँ तो खो जाता हूँ सो जाता हूँ गुडिया जी
खो जाता हूँ स्वप्नलोक में स्पंदन सा ह्रदय करे
जैसे मोती और धागा इक दूजे में विलय करें
आपको देखूं या मैं देखूं आपके सुन्दर वस्त्रों को
भ्रमित किया है आपने मुझको क्या देखूं मैं शब्दों को
दुल्हन के लिवास में ये शर्माना और ये इठलाना
भा जाता है कविता पढ़ना और आपक बल खाना ...
सचिन पुरवार जी
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