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Tuesday, 8 May 2012

उनकी मंजिल और कोई


Dedicated to all gals 
प्रणाम देवियों _/\_


"वो रोये जब उन्हें पहला प्यार याद आया
वो रोये जब उन्हें किया हुआ दीदार याद आया 


हमने तो उन्हें अक्सर हँसते हुए देखा था 
आज देखा तो बस उन्हें रोता हुआ पाया 


मंजिल उनकी वो तो थे पर उनकी मंजिल और कोई 
भोग लगाओ और तलाशो दूजा मंदिर और कोई 


लड़की होती देवी है पर मोल वो इसका जाने क्या 
भोग विलास की वस्तु नहीं ये मूरख वो पहचाने क्या 


पूंछा उस लड़की ने एक दिन क्या तुम मुझ पर मरते हो 
एक किलो या मन भर बोलो प्यार तो मुझसे करते हो 


मुसुका कर बोला वो बेबफा, प्यार व्यार क्या होता है 
ये सब तो बस टाइमपास है, मस्ती है और धोखा है


इस धोखे में पड़ी रही वो साकी प्याला बन कर 
होठों से रसपान किया था किसने प्यारा बन कर 


सच्चाई है यही देवियों संभल के रखना कदम को तुम
एक भूल देगी पछतावा इस सच्चाई को समझो तुम "


रचित - सचिन पुरवार जी

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