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Sunday, 6 May 2012

"खुशबु"


Sachin Purwar ji
Wednesday-01-feb-2012


क्या खुशबु है
क्या है महक 


कौन सा ये फूल है


जब जब आऊं इस बाग़ में
अंग अंग में फ़ैल जाए 
इसकी खुशबु 


कुछ याद याद सा आ जाए
क्या चंचल सी ये खुशबु है


है नौमी का प्यारा सा दिन
वो भी प्यारी सी पंचमी थी 


जब बागों में मैं पहुंचा था


पर खुशबु ये नौमी को क्यों
और साथ ही मेरे घर पर क्यों


मेरे सवाल का ले जबाब 
चंचल खुशबु अब निकली थी 


परदे के पीछे छिपी हुई
कोई और नहीं एक लड़की थी


मैं मन्त्र मुग्ध सा था स्तंभ 
करके बस एक पल का विलम्ब 


मैं दौड़ पड़ा आलिंगन को
वो भी दौड़ी थी चुम्बन को


कितना हर पल ये अपना था
पर टूट गया ये सपना था


कैसे कैसे सपने ऐसे
ये उम्र का ऐसा दौर बना


अब तो यादें आती उनकी
जिनको कल्पना में देख रहा......"


रचित - सचिन पुरवार जी

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