ये तेरी आँखें ,
चंचल म्रगनयनी आँखें
क्या खोज रहीं हैं प्रियतम को,
मत खोज उसे वो कहाँ यहाँ
मत सोच तू उसके वारे में
पर कहाँ सुनेगी तू मेरी
तू खोज
तू खोज तुझे मिल जायेगा
तेरी चाहत सच्ची है लगन
अब तो
मैं भाग रहा था पीछे को
थक कर कर के सारे प्रयास
सारी उम्मीदें छोड़ चुका
पर तेरी लगन तपस्या से
मुझे राह मिली जीवन की फिर
औ करने लगा खोज मैं फिर
कहीं दूर दिखी सजनी मेरी
नैनो की पुतली चला रही
मै पहुँच गया
मैं पहुँच गया मंजिल अपनी
हो प्रेरित चंचल लड़की से
उसने भी पाई हिम्मत मुझसे
हो गया सिद्ध नर और नारी
संपूरक हैं एक दूजे की
है अलग देह तो क्या है फरक
जब सोच मिले ही सब कुछ है....
रचित- सचिन पुरवार जी
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