"सारे दिन की गलतफहमी हर शाम दूर करता हूँ
घुटनों के बल होकर उन्हें सलाम करता हूँ
क्या शर्त है मोहब्बतों की रूबरू हूँ आज
क्यों न मानू शर्तें आखिर मैं उनसे प्यार करता हूँ
मैं रोया रोता रहा सुबह से शाम बेसबब
दिल हुआ दरिया था रहा वो कसक
ये कसक न दर्द दे अरमान करता हूँ
क्यों न मानू शर्तें आखिर मैं उनसे प्यार करता हूँ
मुस्कराहट बेरुकावत यूँ सदा आवाद हो

जी मैं लूँगा देख होंठो की चमक, एलान करता हूँ
क्यों न मानू शर्तें आखिर मैं उनसे प्यार करता हूँ
प्यार दोतरफा यूँ करना क्या अनोखी दास्ताँ
दो हैं तलवारें यहाँ बस एक ही तो है म्यान
ये जहर भी पी के सब बर्दास्त करता हूँ
क्यों न मानू शर्तें आखिर मैं उनसे प्यार करता हूँ
कैसी मजबूरी है कैसी बेबसी तेरी
कैसे दे सकती किसी को चीज तू मेरी
तेरी मुस्कानों पे सब कुर्वान करता हूँ
क्यों न मानू शर्तें आखिर मैं तुमसे प्यार करता हूँ
क्यों न मानू शर्तें आखिर मैं तुमसे प्यार करता हूँ"
रचित - सचिन पुरवार जी
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