Followers

Wednesday, 9 May 2012

पागल लड़की


"वो चंचल कोमल म्रगत्रष्णा सी लिए हुए पागल लड़की
वो पंखुड़ियाँ जैसे गुलाब  पलकें डवडव हिलते वो होंठ
स्पन्द्नीय सिस्कारियां खनखन उसके स्वर निकले जब 
भर उठा ह्रदय बस देख घटा सावन सी वो पागल लड़की


मधुशाला उसके नयन झील सी कजरारी काली आँखें
गलों में भरे गुलाब और आंसू टपकाती वो आँखें
अपने प्रियतम की यादों में वो खोई हुई थोड़ी उदास
जैसे आई हो बाण झील में व्याखान करती आँखें


मैं था प्रियतम उस पगली का जब पास गया तो वो बोली
मुझको ले लो तुम बाँहों में बन जाने दो ये हमजोली
फिर पान किया उसने मेरे चंचल से थिरकते अधरों का
फिर खो से गये थे हां दोनों जैसे हमने हो मधु पी ली


फिर रात्रि चन्द्रिका का उसने और मैंने था उपभोग किया 
फिर मिला एक नवजीवन जब एक प्यार भरा प्रयोग किया
आधार शिला पर चढ़कर इस आधार को इक आकर दिया
मस्ती की मस्त ख्यालों के संसार में मैं क्या मस्त जिया


जब आँख खुली पाया खुद को बिस्तर से नीचे पड़े हुए
ख्यालों के साग़र में गोते खाकर हम खड़े हुए
फिर सोचा वाह क्या सपना था अपना होकर न अपना है
ऐ काश की ये जो सपना था एक दिन अपना हो पड़े हुए ....."




रचित - सचिन पुरवार जी 

No comments:

Post a Comment