रंग लगा कर अंग लगा कर निकला जब मैं उनके साथ
लोगों ने पिचकारी तानी मैंने थामा उनका हाथ
उनके वस्त्रों में गाढ़ा रंग लगे टमाटर जैसा
होंठों का और गालों का रंग भी लगे एक ही जैसा
इन्द्रधनुष के रंगों के जैसा तेरा अंग अंग लागे
जैसे मोर श्याम छवि वाला जंगल में अति नाचे
रंग के इस त्यौहार में प्रेम बरसा लो प्यारे मित्रों
भंग चढ़ा के नाच झूम के मस्ती कर लो मित्रों
पूर्ण वर्ष के बैर भाव को आओ आज हम यहीं मिटाए
होली का यह पावन उत्सव धूम धाम से आओ मनाएं
रचित - सचिन पुरवार जी
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