"कितनी आसान है ये मुहब्बत की राहें,
प्यार यूँ चलते-२ राह पे हो जाता है
कितना हसीं लगता है ये जहाँ
जब किसी को किसी से प्यार हो जाता है

कितने खुबसूरत होते हैं हालत
ये नदियाँ, पवन घाटियाँ लगती हैं अच्छी
जब पनपते हैं दिल में प्यार के जज्बात
ऐसी ही कोई अपनी कहानी थी
अपनी होते हुए भी बेगानी थी
मिली क्या खूब सजा इस प्यार के मजे की
आज अपनी हकीक़त है जो कल किताबों की जुबानी थी
मुझे उनसे प्यार था उन्हें भी थी हमसे मुहब्बत
क्या मस्त दिन थे वो क्या मस्त थी हमारी किस्मत
कल तक जो करते थे हमसे प्यार के दावे
आज बनकर रह गये हम बस उनकी इक खिदमत
हमें आज भी है उनके लौट आने का इंतज़ार
ये जानते हुए भी की उन्हें हमसे नहीं है जरा सा भी प्यार
पर क्या करें ये प्यार इतना नादाँ ही होता है
गुंजाईश नहीं ऐतवार की और हम करते हैं इज़हार
ऐ खुदा दे अक्ल उनको प्यार मुझसे वो करें
दिन महीने साल और हर साल मुझपे वो मरें
ऐ खुदा ये नेक करतब कब तलक हो पायेगा
जब तलक हो पाए पर वो खुश रहें वो खुश रहें"
रचित - सचिन पुरवार जी
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