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Saturday, 12 May 2012

मेरी प्रियेतमा



ओ प्रियेसी
मेरी प्रियेतमा
कहाँ छिपी तू बैठी है
मुझे क्यों इतना रूठी है

तू बोल तुझे वो लाकर दूँ
जो चाह तेरी वो लाकर दूँ

वाली उमरिया ये कमसिन जवानी
कितना सताओगी ओ मेरी रानी

तू चंचल मस्त जवानी से
यूँ मस्त हवा के झोंके से
पल्लू चेहरे पर डाल गयी
मुझे लूट गयी तू धोखे से

आ जाओ तुझे बस छू लूँ मैं
ये जीवन अमृत कर लूँ मैं

तेरे दीदार को तरसा मैं
तेरे श्रृंगार को तरसा मैं

तेरी तुलनाओं में कोई नहीं
सारी दुनिया देखी मैंने


रचित - सचिन पुरवार जी

1 comment:

  1. sachin ji ....aapki kavita ka jawab nahi ....aapki rachna atulneey hai.....

    keep it up....

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